Thursday 18 May 2017

गुड़गांव के 16 वर्ष के अनुभव बने कंपनी के सीईओ

startup, sixteen years old anubhav become ceo his own company
जिस उम्र में बच्चे कैरियर बनाने के बारे में सोचना शुरू करते हैं, उस उम्र में अनुभव वाधवा ने अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया। 16 वर्षीय अनुभव ने टायरलेसली नाम एक स्टार्टअप शुरू किया है।
अनुभव ने दिसंबर 2015 में इसकी नींव रखी है। हालांकि उन्होंने 2013 में भी एक स्टार्टअप शुरू किया था। उससे जो भी रुपये आए उसे अब टायरलेसली में लगा दिया।

अनुभव ने बताया कि जब वे स्कूल से वापस आ रहे थे तभी उन्हें सड़क पर पुराने टायरों को जलते देखा। इससे पर्यावरण बहुत प्रदूषित होता है। उन्होंने बताया कि वे पुराने टायरों को इकट्ठा करते हैं और फिर उसे रिसाइकिल प्लांट में भेजते हैं। 

टायरलेसली को अगर आप पुराने टायर देना चाहते हैं तो कोई भी इनकी वेबसाइट पर जाकर अपना मैसेज छोड़ सकता है। जिसके बाद आपकी बताई जगह से ये पुराने टायरों को उठाने का काम करते हैं। यह सेवा वो फिलहाल दिल्ली और एनसीआर में दे रहे हैं, जल्द ही अपनी से सेवा का विस्तार देश के 12 अन्य प्रमुख शहरों में करने वाले हैं।

अनुभव का कहना है कि वो जब लोगों से पुराने टायर लेते हैं तो उसके बदले कोई भुगतान तो नहीं करते लेकिन टायर लाने ले जाने की सुविधाएं मुफ्त में देते हैं। उन्होंने बताया कि साल 2013 में एजुकेशन एंड टेक्नोलाजी डेवलपमेंट में जो स्टार्टअप शुरू किया था, उसमें जो रुपया इकट्ठा हुआ था, उसकी राशि स्टार्टअप में लगाई है। 

कंपनी की आय के बारे में अनुभव कहते हैं कि वेबसाइट में आने वाले विज्ञापन उनकी आय का मुख्य स्रोत होंगे। टायरलेसली हवा को प्रदूषित किये बिना टायरों को डिसपोज कर उनसे तेल, ग्रीस और दूसरे उत्पाद बिना प्रदूषण किए निकालती है। अनुभव के इस काम में सबसे ज्यादा मदद उनके माता पिता करते हैं, जो नियमित तौर पर अपने काम को लेकर उनका मनोबल ऊंचा बनाए रखते हैं। 

अनुभव के मुताबिक उनकी कोशिश रहती है कि वह विभिन्न समुदायों की मदद से लोगों को टायर के जलने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करें। हाल ही में शुरू किए गए अपने इस वेंचर को लेकर अनुभव का कहना है कि वो फरवरी के अंत तक कम से कम एक हजार बेकार टायर इकट्ठा करना चाहते हैं और उनकी योजना अपने इस कारोबार को देशभर में फैलाने की है। वे दिन भर पढ़ाई करने के बाद ज्यादातर शाम के वक्त अपने इस वेंचर पर ध्यान देते हैं। इस तरह ना पढ़ाई छूटती है और ना ही उनके इस काम में असर पड़ता है।

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